*सर्दी की हास्य क्षणिकाये*
जाड़ा जब बढ़ने लगे ,
कर लीजिए कछु उपाय।
नाना बहाना बनाये के,
नहाना ना कर पाएं ।
कहिए कल ही नहाए थे,
आज नहाए काहे।
कल के कपड़े सूखे नही ,
आज भिगोहु नाहे।
आज देर से आंख खुली ,
काम को देर हुई जाए ।
नाहन का ये समय नही ,
अब कल देखा जाए ।
रोज-रोज नहाने से,
मन से अभिमानी होए ।
आज त्याग स्न्नान करके,
मन निर्मल करे सुहाए ।
कल देर से नहाए थे हम भाई,
फिर से कहते तन साफ करो ।
आज नहाना नही करूँगा ,
भाई मुझे तुम माफ करो ।
जिसको लगे शीतल जल प्यारा,
जाए वो डुबकी गंगा में लगाय ।
पर उपदेश स्नान का देकर,
हमरी ना दुविधा को बढ़ाय ।
कहे कबि रवि रोज ही,
दुबक के कहि छुप जाओ।
जिस दिन तेज़ दिखे गर्मी का,
बस उस दिन तुम नहाओ।
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