रामचरितमानस चौपाई बालकांड hindi
रामचरित मानस की प्रसिद्ध चौपाइयां/दोहा/सोरठा/छंद/ एवम एक लाइन की उक्तियों का संकलन।
सभी पाठकों को सप्रेम और सम्मान सहित एक लघु भेंट।
(पाठकों की सुविधा के लिए दोहा क्रम नंबर साथ मे दिया गया है।जिसके द्वारा पाठक मुख्य पुस्तक से उस प्रसंग की सम्पूर्ण चौपाइयां या दोहे खोज सकते है।)
(भाग-1)
।। बालकांड ।।
बन्दउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर।। ( सो . 5)
बन्दउँ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिय मूरिमय चूरन चारु।
समन सकल भव रुज परिवारु।।
(दोहा-1 )
सुजन समाज सकल गुन खानी।
करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी।।
साधु चरित सुभ चरि कपासु।
निरस बिसद गुनमय फल जासु।।
मुद मंगलमय सन्त समाजु।
जो जग जंगम तीरथराजु।।
दोहा-2
बिनु सत्संग बिबेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोई फल सीधि सब साधन फूला।।
बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी।
कहत साधु महिमा सकुचानी।।
दोहा-3
बन्दउँ सन्त समान चित हित अनहित नहीँ कोई।
अंजली गत सुभ सुमन जिमि सम सुंगध कर दोई।।
(दुष्ट लोगो की पहचान)
बचन बज्र जेहि सदा पिआरा।
सहस नयन पर दोष निहारा।।
दोहा-5 क्रमश
भलेउ पोच सब बिधि उपजाए।
गनि गुन दोष बेद बिलगाए।।
कहहिं बेद इतिहास पुराना।
बिधि प्रपंचु गुन अवगुन साना।।
दोहा-6, क्रमशः
जड़ चेतन गुन दोषमयी बिस्व कीन्ह करतार।
सन्त हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार।।
काल सुभाउ करम बरिआई।
भलेउ प्रकृति बस चुकइ भलाई।।
साधु असाधु सदन सुक सारी।
सुमिरहिं राम देहिं गनि गारि।।
दोहा-7 ख
सम प्रकास तम पाख दुहुँ नाम भेद बिधि कीन्ह।
ससि सोषक पोषक समुझि जग जस अपजस दीन्ह।।
दोहा 7-घ क्रमश
आकर चारि लाख चौरासी।
जाति जीव जल थल नभ बासी।।
सीय राममय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
निज बुधि बल भरोस मोहि नाहीं।
तातें बिनय करउँ सब पाहीं।।
मन मति रंक मनोरथ राऊ।
छमिहहीं सज्जन मोरि ढीठाइ।
सुनिहहीं बाल बचन मन लाई।।
जों बालक कह तोतरि बाता।
सुनहीँ मुदित मन पितु अरु माता।।
हँसिहहिं कूर कुटिल कुबिचारी।
जे पर दूषण भूषनधारी।।
जग बहु नर सर सूरी सम भाई।
जे निज बाढ़ि बढ़ई जल पाई।।
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई।
देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई।।
दोहा-9 क्रमशः
मंगल भवन अमंगल हारी।
उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।
केहि न सुसंग बड़प्पन पावा।
दोहा-11 क्रमशः
जो अपने अवगुन सब कहउँ।
बाढ़इ कथा पार नहिं लहउँ।।
दोहा-12
सारद सेस महेस बिधि आगम निगम पुरान।
नेति नेति कहि जासु गुन करहिं निरंतर गान।।
एक अनीह अरूप अनामा।
अज सचिदानंद पर धामा।।
ब्यापक बिस्वरूप भगवाना।
तेहिं धरि देह चरित कृत नाना।।
दोहा-13 क्रमशः
कीरति भनिति भूति भलि सोई।
सुरसरि सम सब कहं हित होई।।
दोहा-21 क्रमशः
राम भगत चारि प्रकारा।
सुकृति चारिउ अनघ उदारा।।
चहूं चतुर कहुँ नाम अधारा।
ग्यानी प्रभुहि बिसेषि पियारा।।
दोहा-22 क्रमशः
अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा।
अकथ अगाध अनादि अनूपा।।
उभय अगम जुग ,सुगम नाम ते।
कहेउँ नामु बड़,ब्रह्म राम तें।
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी,
सत चेतन घन आनंद रासी।
राम भगत हित नर तनु धारी।
सहि संकट किए साधु सुखारी।।
दोहा-25 क्रमशः
कहौं कहाँ लगि नाम बड़ाई।
रामु न सकहिं नाम गुन गाई।
दोहा-26 क्रमशः
चहुँ जुग तीनि काल तिहुँ लोका,
भए नाम जपि जीव बिसोक।
दोहा-30 ख
श्रोता बकता ग्याननिधि कथा राम कै गूढ़।
किमि समुझो मैं जीव जड़ कलि मल ग्रसित विमूढ़।।
दोहा 37 क्रमशः
आवत एहिं सर अति कठिनाई।
राम कृपा बिनु आई न जाई।।
गृह कारज नाना जंजाला ।
ते अति दुर्गम सैल बिसाला।।
दोहा 38 क्रमशः
जौं करि कष्ट जाई पुनि कोई।
जातहिं नीद जुड़ाई होई।
दोहा-39
सन्त सभा अनुपम अवध,
सकल सुमङ्गल मूल।
दोहा-51 क्रमशः
होइहि सोई जो राम रचि राखा।
को करि तर्क बढ़ावै साखा।।
दोहा-59 क्रमशः
नहिं कोउ अस जनमा जग माही।
प्रभुता पाई जाहि मद नाही।
दोहा-68 क्रमशः
सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई। सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई।
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई। रबि पावक सुरसरि की नाईं।।
दोहा-76 क्रमशः
मातु पिता गुर प्रभ कै बानी।
बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी।।
दोहा-79 क्रमशः
गुर के बचन प्रतीति न जेहि।
सपनेहुँ सुगम न सुख सिधि तेही।।
दोहा-101 क्रमशः
कत बिधि सृजी नारि जग माहिं।
पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं।
दोहा-104 क्रमशः
सुनु मुनि आजु समागम तोरें।
कहिं न जाइ जस सुखु मन मोरें।
दोहा-112 क्रमशः
जिन्ह हरिकथा सुनी नहिं काना ।
श्रवण रंध्र अहिभवन समाना।।
दोहा-113 क्रमशः
रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी।सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।
दोहा-115 क्रमशः
सगुनहि अगुनही नहीँ कछु भेदा।गावहीँ मुनि पुरान बुध बेदा।।
अगुन अरूप अलख अज जोई।भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।
दोहा-117 क्रमशः
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना ।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी ।
बिनु वाणी बकता बड़ जोगी ।।
तन बिनु परस नयन बिनु देखा ।
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेषा ।
असि सब भांति अलौकिक करनी।
महिमा जासु जाइ नहीँ बरनी।।
दोहा -120 क्रमशः
जब जब होई धरम की हानी।
बढ़ाई असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा।
हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
दोहा-121 क्रमशः
राम जनम के हेतु अनेका।
परम् विचित्र एक तें एका।।
दोहा -131 क्रमशः
हरि अनन्त हरि कथा अनंता।कहहीं सुनहिं बहुबिधि सब सन्ता।।
रामचन्द्र के चरित सुहाए।कलप कोटि लगि जाहिं न गाए।।
दोहा-143 क्रमशः
नेति नेति जेहि बेद निरूपा।निजानन्द निरुपाधि अनूपा।।
संभु बिरंचि बिष्नु भगवाना।उपजहिं जासु अंस तें नाना।।
दोहा-166 क्रमशः
बड़े सनेह लघुन्ह पर करहिं।
गिरि निज सिरनि सदा तृन धरहीं।।
दोहा-184 क्रमशः
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना।प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।।
देस काल दिसि बिदिसिहु माहि।कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं।।
दोहा-198
ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद।
सो सज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद।।
दोहा-204 क्रमशः
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा।मातु पिता गुरु नावहिं माथा।।
आयसु मागि करहिं पुर काजा।देखि चरित हरषइ मन राजा।।
दोहा-258 क्रमशः
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहु।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहु।।
दोहा-270 क्रमशः
नाथ संभुधनु भंजनिहारा ।होइहि केउ एक दास तुम्हारा।।
दोहा-278 क्रमशः
सुनहु नाथ तुम्ह सहज सुजाना।
बालक बचनु करिअ नहिं काना।
दोहा-281 क्रमशः
राम मात्र लघु नाम हमारा।परसु सहित बड नाम तोहारा।।
दोहा-293 क्रमशः
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ।धरमसील पहिं जांहि सुभाए।।
दोहा-301
जनक सुकृत मूरत बैदेही।दसरथ सुकृत रामु धरें दही।
दोहा-333 क्रमशः
सासु ससुर गुर सेवा करेहू।पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू।।
अति सनेह बस सखीं सयानी।नारि धरम सिखवहीँ मृदु बानी।।
दोहा-338 क्रमशः
बहुबिधि भूप सुता समुझाई।नारिधरमु कुलरीति सिखाई।।
दोहा-340क्रमशः
मन समेत जेहिं जान न बानी।तरकि न सकहिं सकल अनुमानी।।
महिमा निगमु नेति कहि कहइ।जो तिहुँ काल एकरस रहई।।
दोहा-359 क्रमशः
नाथ सकल संपदा तुम्हारी।
मैं सेवकु समेत सुत नारी।।
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रामचरित मानस अयोध्याकांड संकलन
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