।।सम्पूर्ण अवतार वाणी ।।।
।। प्रचलित मुख्य शब्दो का संकलन शब्द संख्या सहित ।।
सभी पाठकों को सप्रेम और सम्मान सहित एक लघु भेंट।
पाठकों की सुविधा के लिए शब्द क्रम नंबर साथ मे दिया गया है।जिसके द्वारा पाठक मुख्य पुस्तक से उस शबद को खोज सकते है।
कैसे गाऊ तेरी महिमा शब्द कोष में शब्द नही ।
लेकिन तेरे दया कोष ,में क्या है जो उपलब्ध नही।
है प्रतिपालक ,कृपा के सिंधु ,विश्व -रचियता दीनानाथ ।
मैं लघुबुद्धि ,अल्पमति हु ,शीश पे रखो अपना हाथ।
हर घट के हरी अंतर्यामी ,कोटि कोटि परनाम तुम्हे।
शब्द और शब्द के स्वामीं कोटि कोटि परनाम तुम्हे।
२-सद्गुरु सच्चा बूटा तू है दशमद्वार है तेरा देश।
कहे अवतार गुरु ने दी है अपनी बोली अपना वेश।।
3-सत्य डगरिया सच की पूंजी सच्चे का में करू व्यापार।
यह सत्य ही सत्य है केवल घट -घट बैठा जो निरंकार ।।
बूटा सिंह ने सच बताया करके किरपा अपरम्पार ।
अवतार गुरु के चरणों पर में बार बार जाऊ बलिहार ।।
4-में बच्चा कुछ बल नहीं मुझ में, आप करे ले मेरी ओट । अवतार कहे सब दया गुरु की कहता हु डंके की चोट ।।
5-में मानव हर मानव जैसा देह भी सब सी पायी है।
सद्गुरु देकर ज्ञान का अंजन मेरी नजर बनायीं है।।
जो बोलू सो दया गुरु की इस के लेख उतारू मैं।
सद्गुरु की ही दया किरपा को पल -पल उर में धारु मै ।।
सद्गुरु की किरपा है सारी हरी ने दिल में वास किया ।
निरंकार और निर्गुण पर भी इस दिल ने विशवास किया।।
में चलता हु उसी मार्ग पर जिस पर मुझे चलाया है ।
अवतार कहे वही कार्य करू में जो इसने बतलाया है।।
8 - जब आये तो बात न सुनते मरे तो पीछे चलते है।
कहे अवतार जगत में मूरख आज भी मन की करते है।।
9-औषध होती नहीं गुणकारी ठीक यदि अनुमान नहीं ।
बोले मुख से करे न कर से नर वह बुद्धिमान नहीं।।
पगधूलि नहीं संत की मिलती यदि मन बनता दास नहीं।
प्यास कभी नहीं मन की बुझती यदि गुरु पर विशवास नहीं।।
बिना गुरु के ज्ञान न उपजे ज्ञान बिना नहीं टिकता ध्यान।
जब लग पांच प्रण नहीं माने पा नहीं सकता ब्रह्म का ज्ञान।।
9अ -जो जो भी यह जग की वास्तु प्रभु की करके मानेगा ।
वह मानव ही कँवल की भांति सार इस जग की जानेगा।।
जिसका है तन उसका समझो यह सब सिरजनहार का है।
कहे अवतार यह पहला प्रण है तनमनधन निरंकार का ह।।
9ब -नर नारी मै एक प्रभु है सब ही तो है एक सामान ।,
गंगा मै जो नदिया मिल गयी उसको भी तो गंगा जान।।
ये सब प्राणी एक से ही है ,सब का एक सा कर सम्मान ।
कहे अवतार ये दूजा प्रण है जाती वर्ण का छोडो मान ।।
9स- जो कुछ तेरे मन को भाये खान पान वस्त्र अपना ।
पर उपदेशक बनकर जग मै इन सबकी न रार बढ़ा ।।
कहे अवतार प्रभु है मिलता मन का मान गंवाने से ।
प्रण तीसरा घृणा न करना किसी के पीने खाने से।।
9डी-बनकर साधू भीख मांगना सच्चा यह व्यवहार नही ।
करम करो और सेवा धारो भू पर बनना भार नही ।।
प्रभु इच्छा को शुभ कर मानों मन अपना भटकाओ ना ।
कहे अवतार ग्रस्हथ अति उत्तम छोड़ वनो को जाओ ना।।
9इ-बैठ सुनार की हाट पर कोई गहना नहीं बना सकता ।
शिष्य योग्य हो चाहे जितना शिक्षक नहीं कहला सकता।।
जो स्वयं शिष्य है अभी तक क्या शिक्षण कर पायेगा ।
पढ़ कर विध्या हो उत्तीर्ण तब ही तो शिष्य पढ़ायेगा ।।
भेद प्रभु का जो बतलाया तनिक मात्रा भी डोलो ना।
कहे अवतार यह पञ्चम प्रण है बिन गुरु आज्ञा खोलो ना।।
11-महाकाश आकाश के भीतर रमा हुआ है जो दातार।
समय के स्वामी ने रखा है नाम इसी का अब निरंकार ।।
जप तप से ना जाना जाये कर्म धर्म से कोसो दूर ।
कहे अवतार मिले जो सद्गुरु तो ईश्वर का दीखे नूर ।।
12-निज बुद्धि और मान को तज के जो गुरु के दर जाता है । कहे अवतार गुरु कर किरपा उसको भेद बताता है ।।
13-कर कर यत्न हजारो देखे पर यह दृष्टि आया ना ।
कहे अवतार गुरु ने जब तक भेद हमे समझाया ना।।
14- निरंकार ही सत्य है केवल सत्य है केवल इसका नाम ।
यही है करता धर्ता जग का रचे है जिसने चारो धाम। ।
महाकाल है इसका बंदी यही अजन्मा और अज्ञात ।।
पूरा संत मिले तो पूछो निरंकार की सच्ची बात ।।
सदा सदा से सत्य यही है पहले था और अब भी है ।
कहे अवतार अजन्मा है यह तब भी था और अब भी है ।।
15-रचना इसकी बेअंत विस्तार का इसके अंत नहीं ।
आर का इसके अंत नहीं कोई पार का इसके अंत नहीं ।।
कोटि कोटि घर बार है इसके लाख करोड़ो इसके नाम ।
सोच समझ जहा पहुंच ना पाए अनगिनत है इसके धाम ।।
इस धरती के नीचे धरती इस के आगे और जहां ।
कहे अवतार सुनो रे भाई पूरे गुरु से लो पहचान ।।
16-निरंकार ही सत्य है केवल यही अटल सचाई है ।
है भी, था भी ,होवेगा भी ,रचना खूब रचाई है।।
नीच भी जग में हो जाये ऊँचा जो ऊंचे का ध्यान धरे ।
कहे अवतार गुरु किरपा से जो इसका पहचान करे ।।
19-किसने कहो बनाया इसको कौन बनाने वाला है ।
यह करता यह कारन सब का यही सजाने वाला है ।।
रंग रूप से न्यारा दाता न गोरा न कला है ।
सच की है मधुशाला यह तो अमर मधु का प्याला है ।।
अवतार कहे गुरु पास है ताली वही लगता ताला है ।
ले ताली जो ताला खोले वह ही किस्मत वाला है ।।
21-वही कार्य है सत्य जगत में जो तेरे मन भाता रहे ।
आदि अंत अवतार है तु ही,तू ही तू ही मन गाता रहे ।।
22- लाखो होंगे दाता जग में सद्गुरु जैसा कोइ दाता नहीं!
कहे अवतार गुरु पूरे बिन यह पहचाना जाता नहीं !!
25-कुछ मूरख जान आंख के दोषी तुझ में दोष बताते है!
सर पर काल की चोट पड़े जब तभी होश में आते है!!
27-क्या बतलाये ठौर ठिकाना मन बुद्धि समझ न पाते है!अरबो नाद करोड़ो बजे यश तेरा ही गाते है!!
राग भैरवी ताल है देता कैसा नाच रहा मल्हार !
देव देविया हंस हंस गए धर्मराज ने छेड़ी तार !!
अड़सठ तीरथ वंदन करते परिया छेड़े सुर और तान!
सिद्ध समाधी बैठे गए!गावे पंडित और विद्वान
तू सच्चा है जग का स्वामी नाम तेरा सचाई है!
मिला है जिनको सद्गुरु पूरा सूझ उन्ही को आयी है!!
जो कुछ भी है तुहि तू है रचना खूब रचाई है!
कहे अवतार दास में सबका प्रभु की मान बड़ाई है!!
28-प्रभु इच्छा के वस्त्र पहने मन में एक सहारा रहे!साधु रह कर जग के भीतर कमल की भांति न्यारा रहे!!
धीरज संयम और सम दृष्टि संत जानो का गहना है!और श्रृंगार हरी के जन का हरी इच्छा में रहना है!!
संत हरी के मीत है मेरे मम अधरों पे इनका नाम!कहे अवतार हरी के जन को लाख लाख मेरा प्रणाम!!
29-२९-सब कुछ देखे भाले तुहि सब जीवो का ध्यान धरे! स्वयं बैठ पर्दे के पीछे बुद्धि को हैरान करे!!
तुम ही को परनाम है मेरा तुहि ईश महेश मेरा !कहे अवतार तू आदि अनादि युग युग एक ही वेश तेरा!!
30-तिरलोकी का मालिक स्वामी युग युग में भंडार भरे!उपजे दया तो आ जग भीतर पापी जग से पार करे!!
33-जैसी करनी करेगा कोई वैसा ही फल पायेगा !सच्चा है दरबार प्रभु का जो बिजे सो खायेगा !!
कच्चे पक्के आगे चलकर करनी का फल पाएगी कहे अवतार गुरु के सेवक बिलकुल बक्शे जाएंगे!!
37-चित्त बसे निरंकार यदि तो अधरों पर खेले मुस्कान!चित्त बसे निरंकार यदि तो दूर रहे सब दुःख अभिमान!!
तिस पग धूलि मस्तक धरु जिस ह्रदय में तेरा नाम !अवतार कहे में बलि बलि जाऊ जो जन मेरे राम का दास!!
38-भाति भांति से पूजा कर ले पर ना यह मंजूर करे!कर पहचान यदि फिर सिमरो पाप करोड़ो दूर करे!!
40-निर्मल मन यह हो नहीं सकता तीरथ जा जा नहाने से!पाप करोडो धूल जाते है अवतार गुरु दर अन्य से!!
42- गुरु वाले उस रंग को माने जिसका रूप और रंग नहीं! गुरु वाले उस रंग को धारे जो रंग होता भंग नहीं!!
50-तू मालिक तू पालक जग का तुम ही पर है आस मेरी! तन मन धन सब तेरा दाता जीवन पूंजी रास तेरी !!
अपने जन के मन की हालत जान रहा तू सारी है! अवतार दास है दास तेरे का चरणों पर बलिहारी है!!
52-साधु से मिल राम को जाने जग में उसका नाम रहे ! कहे अवतार की भक्त हरी का मरणोपरांत निजधाम रहे!!
53-झोंक दो भट्टी कर्म जगत के जिनमे हरी का नाम नहीं ! झोंक दो भट्टी धन कृपण का जिससे कुछ आराम नहीं!!
54-दूजे को करने को कहता काम स्वयं न करता है! चौरासी लाख योनि अंदर बारम्बार भटकता है!!
55-जो करता है सारे जग का कण कण भीतर वास् करे! उसको निकट दिखाई देता जो गुरु पर विश्वास करे!!
57-साधु की जो संगत कर ले अधरों पर मुस्कान रहे ! अवतार मिले यदि साधु पूरा तो घर की पहचान रहे!!
58-साधुजन की गुण व् महिमा संतो ने ही गयी है!कहे अवतार संत प्रभु में भेद न बिलकुल राइ है!!
59-जिसके मन निरंकार बसा है करते नहीं वे वाद विवाद ! अवतार कहे की निशदिन वे नर प्रभु की दिल में रखते याद!!
60-जिसके मन में गुरु व् हरी है हर रंग में इक रंग रहे!याद गुरु की जो नहीं बिसरे यह हरी उसके संग रहे!!
जिसके मन में बसा है सद्गुरु उसकी संगत कर दे पार!अवतार गुरु का यश जो गाए उसका यश गाए संसार!!
61-जिनके मन में ज्ञान गुरु का माया से रहते होशियार ! जिन संतो ने राम को जाना ,राम है उनका पहरेदार !
61-जिस ह्रदय निरंकार बसा है ब्रह्मज्ञानी कहलाता है!जिस ह्रदय निरंकार बसा है एक से प्रीत लगाता है!!
62-सद्गुरु है सब जग का दाता जो चाहे कर सकता है! पत्थर भी जो चरण को छू ले भवसागर तर सकता है!!
नाम की औषधि देकर सद्गुरु सारे रोग गंवा सकता है! अवतार यदि है सद्गुरु पूरा छन में राम मिला सकता है!!
63-सचाई का नाम है सद्गुरु सच्चा ही व्यापार ! अवतार गुरु है आप नारायण क्षमादान दे पर करे!!
65-सुन सुन निंदा संत हरी के चित्त में कभी न लाते है! हरी नाम का पी पी अमृत गीत प्रभु के गाते है!!
67-सद्गुरु आता है इस जग में सुखिया करने कुल संसार ! सद्गुरु आता है इस जग में केवल करने पर उपकार!!
गुरु जैसा कोई दाता नहीं है सद्गुरु जैसी बुध्दि नहीं! कहे अवतार बिना गुरु पूरे मन की होती शुद्धि नहीं !!
68-संतो की प्रशंशा करना प्रभु की मान बड़ाई है ! कहे अवतार संत प्रभु में भेद न बिलकुल भाई है!!
72-सद्गुरु के चरणों से पावन कोई तीर्थ स्नान नहीं!बिना गुरु के पशु है मानव बन सकता इंसान नहीं!!
गुरु चरण की रज को लेकर मल मल कर स्नान करो ! तन मन धन को साधु ऊपर हंस हंस कर कुर्बान करो !!
साधु सेवा वह कर सकता जिस से स्वयं कराये यह ! अवतार वही गावे गुणं हरी का जिस मुख से भी चाहे यह!!
74-अधिक कीमती हीरो से भी संत जानो के समझो बोल ! मूल्य चूका सकता नहीं कोई वचन गुरु के है अनमोल!!
सदा सदा सुनता रहता है प्रभु की इस शहनाई को ! अवतार गुरु का शब्द संभाले छोडो अन्य पढाई को!!
77- समय गया फिर हाथ न आये अंत समय पछतायेगा!जब संदेशा यम का पहुंचे नैनो नीर बहायेगा !!
काम समय पर नाम ही आये यह हाड और चाम नहीं! अवतार भक्त से लेखा मांगे धर्मराज का काम नहीं !!
78-बिन देखे यह मन नहीं माने ,बिन मन माने प्यार नहीं!प्यार बिना न भक्ति हो बिन भक्ति बेडा पार नहीं !!
गुरु दिखावे गुरु मनावे गुरु ही प्यार सिखाता है ! बिन गुरु भक्ति मूल न होवे जीवन व्यर्थ गंवाता है !!
85-मनमर्जी से जो भी करते बिन माया कुछ और नहीं! कहे अवतार गुरु यदि बक्शे माया करती जोर नहीं!!
87-अँधा बहरा मूरख बेमुख छोड़े न नादानी को !दूध समझ कर बिलो रहा है बैठा बैठा पानी को!!
रमे राम को देखो मूरख खोज रहा विरानो में !रमे राम को खोज रहा है ग्रंथो में बुतखानो में !१
राम राम कर आयु बीती राम समझ में आया न ! कहे अवतार बिना गुरु पूरे राम किसी ने पाया न!!
99-सद्गुरु के चरणों में पल पल जिस सेवक का ध्यान रहे !कहे अवतार उसी जन भीतर पल पल यह भगवान रहे!!
102-शिष्य गुरु का हर क्षण हर पल दास ही बनके रहता है!शिष्य काम है वह ही करता जो भी सद्गुरु कहता है!!
कर्म करे फल को न चाहे शिष्य कर्म करता निष्काम !अवतार कहे की ऐसे शिष्य का होता जग में ऊँचा नाम !!
105-शिष्य गुरु की आंख से देखे ,गुरु के कान से सुनता है! शिष्य गुरु के नाम सरोवर हीरे मोती चुनता है!!
वचन गुरु के मन में धारे दिल में पर उपकार रहे ! हर वक्त हर हाल के भीतर जुडी गुरु से तार रहे!!
106-बुद्धि का बल काम न आया न आयी चतुराई है !कहे अवतार गुरु किरपा से बात समझ में आयी है!
113-जिस धन और वैभव की खातिर मानव दौड़ लगता है!सद्गुरु के सेवा से यह धन स्वयं ही दौड़ा आता है!!
जिन सुखो की खोज प्रतिपल हे मेरे मन मीत करे ! सब सुख बन के दास रहेंगे यदि संतो से प्रीत करे !!
116-सच्चे साधु संत हरे के एक ही बात बताते है! ज्ञानी भी जो छोड़े भक्ति अंत समय पछताते है!
119 नाम की दौलत जो तुम चाहो, सत्गुरु का सत्कार करो।
शीश झुकाकर कहो गुरू से, मेहर मेरी सरकार करो।
द्वार तुम्हारे मंगता आया, झोली डालो जीवन दान।
अपने प्यार से भर दो कासा,कर दो रहमत और अहसान।
सुन्दर सुन्दर चरण तुम्हारे,इस सेवक को धूली दो।
अपने रंग में रंग लो मुझको, जो खोए ना पूँजी दो।
जीवन के हर सांस में अपने, तुझको ही बस ध्याऊँ मैं।
देख के माया रंग बिरंगी, मन को न भरमाऊँ मैं।
द्वार से लौटे ना कोई खाली, यही सदा से रीत तेरी।
जब तक सांस में सांस है मेरे, निभ जाये यह प्रीत तेरी।
साजन तेरी ओट ली मैंने,तू है मेहरबान मेरा।
अवतार पवित्र चरण-धूलि में, होता रहे स्नान मेरा।
125-गुरु की महिमा गाने से ही कलह क्लेश सब होते दूर !गुरु की महिमा गाने से ही मन के भीतर होता नूर!!
132-मिला है जिनको सद्गुरु पूरा वाणी उनकी बदल गयी!चरण धूल जिन मस्तक धारी रेख पुरानी बदल गयी !
जिसने प्रभु को जान लिया है उस जन का है बेडा पार! इस जग भीतर वही है सुखिया बाकि दुखिया कुल संसार!!
भक्तो का मुख उजला होता जग में होती जय जयकार !निंदक का मुख कला जग में सब जान देते है फटकार!!
गुरु मुखो का और है मारग मनमुखो का रस्ता और! कहे अवतार की मनमुख भटके गुरु मुख पाए अपना ठौर !!
141-रीझ पड़े यदि सद्गुरु पूरा रीझ गया समझो भगवान ! कहे अवतार गुरु कृपा से कण मिटटी का गगन सामान!!
146-हरी जन व्यर्थ ही बोल न बोले कर्म के संग है इनका बोल ! दुनिया में यह ऐसे रहते ज्यों जल में रहे कमल अडोल !!
147-भाड़ में झोंकी सारी आयु यदि राम की सार नहीं ! कहे अवतार बिना गुरु पूरे हो सकता उद्धार नहीं!!
154-दसो दिशा में हरी को देखो इस से उत्तम धर्म नहीं !साधु संत की सेवा करना इससे ऊँचा कर्म नहीं!!
जो संतो की सेवा में धन वैभव आन लुटाता है! सच कर मनो मैल ह्रदय का आप ही धुलता जाता है!!
सद्गुरु के उपदेश से बढ़कर जग में कोई वाणी नहीं!मन अपने की भेंट छढना इससे बढ़ क़ुरबानी नहीं!!
जहा बैठ के राम न भूले सबसे बड़ा है वह स्थान !सबसे बड़ी है भक्ति वह ही सद्गुरु जिसे करे परवान !!
जो नर कर्म को करके पहले फिर करता उसका प्रचार!कहे अवतार की ऐसे जन पे तन मन अपना देऊ वार !!
161-कहा लिखा है जग को छोडो कहा लिखा है धूनी ताप ! कहा लिखा है छोड़ के गृहस्थी मन में अपने कर संताप !!
कहा लिखा है बच्चे छोडो कहाँ लिखा है वेश बना ! कहाँ लिखा है बनकर साधु डगर डगर पे धक्के खा !!
कहाँ लिखा है त्यागो माया कहाँ लिखा है धन लुटा ! कहाँ लिखा है कष्ट उठाओ तन पर अपने भस्म रमा !!
वेद कुरान सभी ये कहते गुरु चरणों पर शीश झुका ! कहे अवतार की एक क्षण भीतर प्रभु को अपने लीजै पा !!
182-जग की शोभा रहेगी जग में अंत में कुछ भी हाथ नहीं!कहे अवतार हरी के बिन तो कुछ भी जाता साथ नहीं!!
183-त्याग के धंधे मोह माया के प्राणीं निज की कर पहचान ! कहा से आया कहा है जाना अवतार गुरु से ले पहचान !!
186- नर दूजे को शिक्षा देवे पर जो स्वयं न करता है! कभी भी वह नर बच नहीं सकता गर्भ योनि में पड़ता है!!
जो भी संतजनों की अपने मस्तक धुल लगाएगा !कहे अवतार वही नर जग में सकल पदार्थ पायेगा!!
187-सद्गुरु वह जो राम मिला दे ध्यान कर्म पर धरता नहीं! ऐसे गुरु को राम जो समझे किसी दुविधा में पड़ता नहीं!!त्याग के दूजा भाव यदि तू संत शरण में आएगा !कहे अवतार एक ही क्षण में जीवन मुक्ति पायेगा!!
194-लिखा है वेद ग्रंथो भीतर जिसका सकल पसारा है!कहे अवतार यह रूप रंग और चक्र चिन्ह से न्यारा है!
195-सब रचना है एक प्रभु की बनो न भात में मूसलचंद ! कहे अवतार प्रभु को जानो नित के झगड़े कर दो बंद!!
197-मिला है मुझको सद्गुरु पूरा आना जाना ख़तम हुआ!सहज अवस्था मिल गयी मुझको कष्ट उठाना खत्म हुआ!!
संग पिया के गाऊ रागिनी राग पुराना खत्म हुआ ! पाठ प्रेम का गुरु पढ़ाया उठ उठ धना खत्म हुआ!!
मिल गए मुझे प्रभु अविनाशी दूर सभी संताप गए ! कहे अवतार गुरु की किरपा पूजा पाठ और जाप गए!!
202-नेह झूठ के संग लगाया सोवत रैन गुजारी है! कहे अवतार जो सच को जाने नर वह ही निरंकारी है!!
205-पूरा सद्गुरु जात पात के झगड़े सभी मिटाता है! कहे अवतार गुरु इन सब को एक ही साथ बैठता है!!
210-दुनिया सारी उलझ गयी है रहन सहन के रगड़ो में ! कहे अवतार गुरु के प्यारे नहीं पड़ते इन झगड़ो में!!
214-सच्ची बात कहु में सुन लो जनम मरण में पड़ती नहीं ! कहे अवतार की धर्मराज से आत्मा मेरी डरती नहीं !!
215-एक एक है जग का मालिक गुरु ने बात बताई एक ! खत्म हुए सब मन के झगड़े बात समझ में आयी एक!!
एक की पूजा एक का सुमिरन गुरु से पढ़ी पढाई एक ! एक एक से एक मिलेगा गुरु ने राह दिखयी एक!!
एक बिना जो नजर आ रहा सब कुछ यही रह जाना है ! कहे अवतार इसी एक ने जग से पार लगाना है!!
221-बिना गुरु नहीं रस्ता मिलता व्यर्थ ही जीवन जाता है ! कहे अवतार मिले गुर पूरा तो मन धीरज पाता है!!
222-सद्गुरु चाहे तो हर एक नर से हर एक काम करा सकता है ! पिंगला पर्वत चढ़ जाये गूंगा मानव गा सकता है!!
223-साधु जान जो वाणी बोले सुनना और सुनाना है !नित्य प्रति सतसंग में आकर सेवा भाव कामना है!!
रसना से हरी कीर्तन गाना आंख से दर्शन पाना है!श्रद्धा प्यार से गुरु चरणों पर पल पल शीश झुकना है!!
जो जन भी यह कर्म है करता वह नर सुख को पाता है! कहे अवतार गुरु यदि रीझे यश सारा जग गाता है!!
226-तन मन धन इन सबसे ऊँची वह सेवा कहलाती है!जो होवे निष्काम निरिछित सद्गुरु के मन भाती है!!
देश काल अनुसार समय के सद्गुरु रह दिखता है!आज्ञा धार गुरु की माथे सेवक चलता जाता है!!
237-उस जन का है गुरु सहारा जिसका और सहारा नहीं ! उसका ही है गुरु गुजरा जिसका और गुजरा नहीं!
बिन सद्गुरु के पापी जन को कोई कंठ लगता नहीं ! बिन सद्गुरु के मैले मन का कोई मैल गंवाता नहीं!
कहे अवतार गुरु की किरपा जब तक की हो जाती नहीं! तब तक कभी भी मूरख मन को राह जीवन की आती नहीं!!
240-पहले दर्शन फिर हो प्रीति फिर चाहे कोई जाप करे!कहे अवतार बिना प्रभु देखे जाप नहीं विरलाप करे!!
242-माया के संग प्रीत लगायी और करता बिसराया है!अंत समय यह काम न आये माया तो एक छाया है!!
247-संगी साथी सब मतलब के जीवन का आधार गुरु ! दुनिया के सब नाते झूठे सच्चा रिश्तेदार गुरु!!
248-सद्गुरु की जिस ओट है पकड़ी उस जान को कोई टोटा नहीं!सभी और से सच्चा है वह और मन भी उसका खोटा नहीं!!
वह राजा है कुल सृष्टि का जो नर प्रभु को लेता जान !दुःख पीड़ा कोई निकट न आवे जो सद्गुरु से लेता ज्ञान!!
249-सोच सोच कर मरे सयाने भेद किसी ने पाया न! कहे अवतार बिना गुरु पूरे ज्ञान समझ में आया न !!
252-बिना ज्ञान के कर्म जो करना व्यर्थ समय का खोना है! घर से उल्टे पथ पर चलना दूर ही घर से होना है!!
254-गुरु नहीं जो कर्म बताये प्रभु का दर्श कराये न ! भांति भांति के कर के भाषण असली बात बताये न!!
256-यद्पि इसका रूप नहीं है धार रूप कई आता है ! कहे अवतार अलख की लखता सद्गुरु आप करता है!!
257-पांच तत्व और तीन गुणों से रचा हुआ है यह संसार!सब में रहकर सब से न्यारा सत्य सनातन यह निरंकार!
261-पर भक्तो से माया रानी सदा सर्वदा डरती है ! कहे अवतार भक्तजनो का माया पानी भरती है!!
264-जिसको इसका मिले सहारा काम न उसका रुक सकता !आधि व्याधि रोगो के सम्मुख कभी नहीं वह झुक सकता!!
भक्त जनो का हित करने को आप स्वयं आ जाता है!एक पल भीतर अपने जन की आ के लाज बचाता है!!
272-यह मार्ग दो धार कटारी पग चलना कठनाई है!कहे अवतार की गुरु किरपा से बात समझ में आयी है!
277-माने यदि हम वचन गुरु का गुरु की महिमा होती है!स्वतः ही होता हरी का सुमिरन और मैल भी मन की खोती है!!
गुरु वचन है ज्ञान गुरु का निरंकार है इसका नाम !आप तरे और कुल को तारे जिसने जान लिया निज धाम !!
निरंकार की आज्ञा माने सद्गुरु पर विश्वास करे ! कहे अवतार सदा सुख पाए और जग भी शाबाश करे!!
299-सद्गुरु की है यही निशानी पल में ही दिखला दे राम ! कहे अवतार वही ब्रह्मज्ञानी जो दिख्लावे ब्रह्म का धाम!!
300-एक बूटे की रहमत सारी जिसने वृक्ष लगाया है ! कल्प वृक्ष अवतार गुरु है जो चाहा सो पाया है!!
301-जग न जाने भक्ति क्या है हरी को पाना भक्ति है!त्याग के सारे रगड़े झगड़े गुरु रिझान भक्ति है!!
एक को जानो एक को मानो एक को पाना भक्ति है!जान हरी को याद में इसकी समय बिताना भक्ति है !!
निर्गुण निर्मल निरंकार है वाणी ने फ़रमाया है! कहे अवतार अंग संग मैंने रमेय राम को पाया है!!
302-गुरु की आज्ञा मान के मन से के जो सेवा सेवक है!जी जान और तन मन धन से करे जो सेवा सेवक है!!
307-ठाकुर मेरा सर्वव्यापी ठोर न कोई खली है!पात पात में यही विराजे बैठा डाली डाली है!!
इधर उखाडे उधर लगावै यह एक अद्भुद माली है ! नए नए यह रूप बनाये हर मुखड़े पर लाली है!!
311-नाम है सब रोगो के औषधि सारे दुःख मिटाये नाम ! शक्तिशाली नाम प्रभु का बिगड़ी बात बने राम !!
पूरा सद्गुरु इस जग भीतर नाम का ही व्यापारी है! निरंकार अवतार जो जाने बन जाता निरंकारी है!!
314-नत मस्तक हो मीठा बोलो सद्गुरु यही सिखाता है ! पल पल सोच भलाई सबकी सद्गुरु यही पढ़ता है!!
316-नर तन तेरा ब्रह्म नहीं है!ब्रह्म तो भीतर के निवास!नाच नचाये भीतर रहकर ओट में तन की करता वास्!!
आप बैठ के घर के अंदर आप किवाड़ है खोल रहा !कांच की हाट पे बैठ के दाता सत्य का सौदा तौल रहा !!
317-नक़ल के भीतर असल छिपा है इसी असल से प्यार करो !इस जीवन के ध्येय को जानो जीवन न बेकार करो!!
320-एक मानव न मानव बनता एक देखो भगवान बने ! कहे अवतार एक ही वस्तु जो भुझे इंसान बने!!
327-गुरसिख से जब गुरसिख मिलते मन ही मन हर्षाते है!एक दूजे के चरणों पर वे अपना शीश झुकते है!!
330-दृढ निश्चय के संग मिल बैठो कच्चे के संग करो न प्यार!कच्चे के संग संशय उपजे कच्चे ले डूबे मझधार !!
331-जग में रहकर सारे जग के सारे कार व्यवहार करो!सुत भगनी और रिश्ते नाते संग सभी के प्यार करो!!
भूलो न पर तुम ह्रदय से असली कौन ठिकाना है!चार दिवस तक रहकर जग में लौट कहा पर जाना है!!
339-घर में रहकर घर को पाना संत की यही बड़ाई है! कहे अवतार की पूरे गुरु से शिक्षा हमने पायी है!!
342-सदा नम्रता मन में धारो ये सद्गुरु का कहना है! शीश झुका कर जग में चलना यह सेवक का गहना है !!
343-पाप पुण्य के झगड़े भीतर दुनिया सारी उलझ गयी ! कहे अवतार प्रभु जो पाया जीवन गुथ्ति सुलझ गयी !!
346-आओ प्रभु के दर्शन कर लो कह दो सब इंसानो को! सद्गुरु क्षण में मानव कर दे मेरे सम हैवानो को!!
351-हाहाकार जगत की सुन के वेश अनेक बनता है!रूप बदल के मानव का अवतार जगत में आता है!!
358-दुनिया का तो काम है केवल जग में शोर मचाने का!कहे अवतार है काम गुरु का जग को पार लगाने का!!
369-चाहे पढ़ लो लाख नमाजे पूजा दिन और रात करे ! कहे अवतार बिना गुरु पूरे कोई न पूरी बात करे।
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