स्नान से सुरक्षित दूरी रखे(हास्य व्यंग्य)
मैं पहले रोज ही नहाता था।
कभी कभी दिन में कई बार भी नहा लेते थे।
मनुष्य स्वभाव स्वरूप मुझे भी इस बात का अभिमान हो गया कि मैं रोज नहाता हु।मुझसे बड़ा नित्य नियम साधक कोई नही है।
और अभिमान तो बड़ो से बड़ो का नही रहा फिर मैं तो हु ही क्या....
फिर मेरा अभिमान तोड़ने के किये स्वयम शरद ऋतु को अपने विकराल रूप में अपने सभी शस्त्रों सहित जैसे कि शून्य डिग्री पारा ,घना कोहरा आदि के साथ प्रकट होना पड़ा।
शरद ऋतु ने कहा ,पुत्र अभिमान ठीक नही हैं।चाहे वो प्रतिदिन स्नान का ही क्यों ना हो।अतः कर्मयोगी बनो और त्याग के रास्ते पर चलो,त्याग सर्वोपरि योग है।
तुम कुछ दिन स्नान का त्याग करके मन को पवित्र करने हेतु साधना करो और अभिमान को नष्ट करो।
या फिर एक दिन स्नान और एक दिन उसका त्याग करके भी अपना अभिमान दूर कर सकते हो।
इस प्रकार तुम्हारा मन पवित्र हो जाएगा।
क्योंकि उससे प्रतिदिन स्नान करने का तुम्हारा अभिमान खत्म हो जाएगा।
इस प्रकार इस नाचीज को परम् ज्ञान की प्राप्ति हुई और मेरा अभिमान चूर चूर हो गया।
*जे रखी चाही अभिमान से दूरी,प्रतिदिन स्नान से बनावे दूरी*
इस प्रकार स्नान का त्याग करके और मन को सब प्रकार से परम पवित्र जानकर शरद ऋतु को श्रद्धा पूर्वक शीश नवाकर ।मुझे अनेको प्रकार के सुख प्राप्त हुए।।
शरद ऋतु की जय हो।
जय हो।जय हो।।
हे आलस के मानस पुत्रो,
दूर रहो स्नान से ।
मन को पवित्र रखा करो,
दूर रहो अभिमान से ।
🤓😂🤓😂
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☺️☺️☺️
(केवल हास्य व्यंग हेतु प्रस्तुत,सत्य मानकर आचरण ना करे,यथासंभव स्नान करें, स्वच्छ रहे।)
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